भारत की पावन पवित्र धरती यहां देवताओं का मन रह कर लिलाऐं करने के लिए हमेशा आतुर रहा है और इन्हीं कीर्डा स्थलियों को मानव कल्याण के लिए तीर्थ/धार्मिक स्थानों का नाम दे दिया गया है। भारत में ऐसे अनेकों तीर्थ स्थल है जो हमारी धार्मिक आस्था पहचान के साथ हमारे देश की आत्मा है। ऐसे पवित्र ऐतिहासिक तीर्थ स्थलों के दर्शन से ज्ञान में वृद्धि तो होती ही है साथ ही एक अटूट समबन्ध प्रकृति के साथ कायम होता है। हमारी पौराणिक धार्मिक मान्यता के अनुसार भारत में ३३ करोउ धार्मिक तीथ्र स्थानों का होना बताया जाता है परन्तु भारत में देवों के देव महादेव के प्रति लोगों की श्रद्ध व अटूट विश्वास होने के कारण ऐसा कहा जाता है कि चारों दिशाओं में स्थित चार धामाकें की जो भी व्यक्ति ययात्रा कर लेता थे वह मोक्ष को प्राप्त करता है। पूर्व में जगन्नाथ पुरीधाम, उत्तर में श्री बद्रीनाथ धाम पश्चिम में श्री द्वारिकापुरीधाम तथा दक्षिण में श्री रामेश्वरम् धाम। ये चारों मानव मोक्ष के धाम भारत वर्ष में ही नहीं पुरे विश्व में प्रसिद्ध है इनके दर्शनों से तन मन की शुद्धि होती है। वैसे भी शिव के सुंदर मनमोहक रूप व अपकी महिमा के गुणगान व रूप का बखान करना मानव बुद्धि की सीमाओं से परे ही नहीं देवताओं के लिए भी असम्भव है। शिव ही सम्य है, शिव ही नाथ है, शिव के अनकों नाम व रूप् है परन्तु शिव के भोले स्वभाव के कारण भक्त इन्हें भोले बाबा के नाम का संबेधन अधिक करते है। शिव लीला ही थाह पाना असम्भव ह। उनके तांडव रूप व तीसरी आंख से ही सारा ब्रह्माण्ड थर्रा जाता है। शिव सर्वशक्तिमान है।
ऐसी भी मान्यता है कि भारत के पंचनाथों में पूर्व दिशा में श्री वैद्यनाथ (जगन्नाथ) उत्तर दिशा में श्री बद्रीनाथ (केदरनाथ) पश्चिम भारत में श्री सोमनाथ (क्षरिकापुरी) व दक्षिण में रामनाथ (रामेश्वरम्) तथा मध्य में श्री झाडखण्डनाथ है, जो कि राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित हैं। पंचनाथों में एक नाथ जो मध्य में स्थित श्री झाड़खण्डनाथ है इनकी विशेषता यह है स्वयंभू शिवलिंग होने के कारण पूरे विश्व के मानचित्र में तीर्थ स्थली के लिए विखयात है और मानव मोक्ष के लिए श्रद्ध सुमन पूजे जाते है। इनका सम्मोहनी, आकर्षक रूप देखते ही बनता है इसी लिए यह बात प्रचलित है की शिव के चारों तीर्थ धामों की यात्रा करने के साथ यदि झाड खण्डनाथ के दर्शन नहीं किये तो मनुष्य का तीर्थ दर्शन अधूरा ही रह जाता है। झाड खण्ड नाथ तीथ्र स्थली परिसर में आते ही स्वतः ही शिवजी के उस महात्भ्य का स्वर गूंजने लगता है जो पार्वतीजी को कहा था कि हे देवी घोर कलयुग में वे ही प्राणी धन्य है जो बद्रीनाथ के दर्शन करते हैं और यही महात्भय का स्वय झाड परिसर में गूंजता सा प्रतीत होता है यहां ऐसा प्रतीत होता है मानो स्वयं शिव कह रहे हो कि झाड खण्डनाथ के जो भी कलयुग में दर्शन करते है तथा झाड खण्ड नाथ के स्मरण मात्र से ही मनुष्य सारे पापों से मुक्ति पाता है और जो मनुष्य झाड खण्डनाथ के दर्शन करता हैं इसलिए इस कलयुग में मुक्ति के लिए श्री झाड खण्ड नाथ की शरण में आकर ही मनुष्य की गति है और शायद यहीं कारण है पंचनाथों में मध्य में श्री झाड खण्डनाथ तीथ्र स्थली का स्थान धार्मिक आस्था व विश्वास का अटूट सम्बन्ध मनुष्य में विराजमान है शिव शक्ति के रूप में। वैसे भी प्रभु ने कहा है कि जब घोर कलयुग में तंत्र, मंत्र, अराजकता, भय, कपट, लोभ, अविश्वास, अधर्म, कूकम आदि-आदि अपनी चर्म सीमा पर होंगे और मानव मंत्रो (प्रभु भक्ति) को छोड तंत्र विद्या के मायाजाल में फंस कर अपना हित खोज रहा होगा जैसा की वर्तमान में हो रहा है उस समय उन्हीं लोगों को माक्ष की प्राप्ति होगी जो प्रभू शिव की शरण में होंगे। ऐसे ही भटके लोगों को मोक्ष के मार्ग की राह पर लाने के लिए हो तो कहा गया है।
किस संग कीजे दोस्ती, सब जग चतुर चालाक निश्चल केवल है,
श्री झाड़खण्डनाथ उन संग कीजे प्यार ।
जय झाड़खण्डनाथ लेने को एक झाड खण्डनाथ नाम है,
देने को क्षमा दान, तारन को है नम्रता, डूबने को अभिमान।
जय झाडखण्डनाथ ज्यों दीपक माही ज्योत है, ज्यो जुगनू में चमक है।
तेरा झाडखण्डनाथ तुझमें बसे, जाग सके तो जाग।
पावन पवित्र अंलोकिक झाड खण्ड तीर्थ धाम का वर्णन करने से पहले यदि हम सृष्टि के रचियता भोले नाथ के स्वरूप की आभा को निहारने का प्रयास करे तो हमें अनेकों मानव मोक्ष के लिए संदेश मिल सकते है। आओ अपनी मानव बुद्धि का उपयोग करते हुए भोलेनाथ की शरण में चलकर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग तलाश करें :
शिव के स्वरूप में मानव कल्याण की अभा :-
शिव का पंचानन रूप :९ भस्म यानि पृथ्वी २ गंगा यानि जल ३ त्रिनेत्र यानि तेज तत्व ४ सर्प यानि वायु ५ डमरू यानि आकाश।
1. |
कैलाश पति :
शिवजी के अनेको नामों में से एक नाम कैलाशपति भी है और कैलाश पर्वत की चोटियां ही उनका डेरा है पशु, पक्षी, मानव कन्नर, आदि से प्यार करने वाले भोले नाथ ने अपना स्थान पृथ्वी पर ही बना कर आज के कलयुग में यह संदेश मानव को देने का प्रयास शायद किया था, कि मानव कल्याण के लिए त्याग व सरलता ही सर्वोपरी होता है। |
|
2. |
जटाए :
जटाऐं मुखय तीन गुणो को दर्शाती है ब्रह्म ज्ञान, ध्यान, दिव्य ज्ञान। तीनो ही गुण मानव को भव सागर से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताते है। |
|
3. |
गंगा :
गंगा को अपनी जटाओं में स्थान देकर उसके जल को पावन पवित्रता से परिपूर्ण करके भोले नाथ ने गंगा को धरती पर मनुष्यों की मुक्ति के लिए ही भेजा था। वर्तमान में भी गंगा जल पूरे विश्व में पवित्रता के लिए श्रद्धा स्वरूप पूजा जाता है। आज तक संसार को पापों से मुक्ति के लिए गंगा जल शिव-शक्ति के आर्शिवाद के रूप में हमारी रक्षा किये हुए है तथा गंगा जल ही प्रतीक है पवित्रता पावनता, शुद्धता, निर्मलता का। |
|
4. |
राख (भभूत-भस्म) :
भस्म ही जीवन की सच्चाई है इसी लिए शायद भोलेनाथ का आवरण भस्म से लिपटा होता है और यह संसार के लिए भी सूचक है मानव को सत्यता से वाकिफ् कराने के लिए की अंतिम यात्रा मानव की भस्म में ही विलिन होने की है फिर भी मानव अपनी गति को मोक्ष की राह पर नहीं डाल पाता शायद काल चक्र के माया जाल के कारण इसी तो यह अति आवश्यक है की अपने आप को भोले नाथ की शरण में डाल कर मुक्ति के लिए निश्चिन्त हो जाये। |
|
5. |
सर्प :-
भोले नाथ ने सर्प को गले में धारण करके संसार के प्राणियों को शायद यह संदेश देने का प्रयास किया है कि संगति से भयानक विषधारी सर्प को भी भोले स्वभाव में परिवर्तित किया जा सकता है तो मानव अपने आपसी झगड़ों को भूल कर भाई-चारे को आचरण कें नहीं अपना सकता और यहीं कारण शिव के गले में सर्प का लिपटा होना सूचक है सर्प विनाशकारी होने के साथ प्रेम का प्रतीक भी है । |
|
6. |
त्रिशुल :
शिव का त्रिशुल धारण करने के कारण शिव को त्रितापहारक भी कहते है जो सूचक है अर्धम के खिलाप न्याय का । |
|
7. |
डमरू :
प्रतिक है ध्यानाकर्षण का। डमरू को शिव रूप में आकाश की संज्ञा भी दी है पंचानन नाम में । |
|
8. |
नांद :
डमरू से निकलने वाली ध्वनि को नाद कहा जाता है। |
|
9. |
तत्व और वरूण मुद्रा :
शिव के हाथों की उंगलियां वरद मुद्रा में होती हे। अंगूठे और तर्जनी को एक साथ जोड़ कर गोल आकार बनाया जाता है। शेष तीन उंगलियां आत्मा, परमात्मा और भौतिकता की प्रतीक है। |
|
10. |
रूद्राक्ष :
शिव का एक नाम रूद्र भी है तथा नेत्रों को अक्ष भी कहा जाता है इसका अर्थ हुआ भगवान रूद्र के नेत्र। इसकी उत्पति भगवान शिव की आंखों से होने के कारण रूद्राक्ष कहलाता है। इसका अर्थ है रूद्र यानि बलशाली, शक्तिशाली व अक्ष को कहते है आंखे। मान्यता है कि रूद्राक्ष शिव के आंखों से निकला है जो पावन पवित्र है। यह एक मुख से चौदह मुखों तक पाया जाता है। |
|
11. |
कमंडल :
यह कद्दू यानि कासिफल का होता है। |
|
12. |
त्रयंवक :
तीन नेत्रों का अर्थ है त्रिनेत्रधारी । शिवजी को तीन नेत्रो के कारण त्रयंबक भी कहते है। |
|
13. |
अर्धचंद्र :
चन्द्रमा प्रतीक है पावन शीतलता का। शिवजी ने अर्धचन्द को मुकुट रूप में धारण किया हुआ है। |
|
14. |
धतूरा :
शिव पूजा में धतूरे का महत्व माना जाता है। |
|
15. |
मृग छाल :
मृग छाल का स्वभाव चंचलता, चपलता का पर्याय है इसका उद्देश्य इन्द्रियों पर काबू रखना । |
|
16. |
बैल :
उनका वाहन है जिसे नन्दी के नाम से जाना जाता है। |
|
17. |
बिल्व पत्र :
शिवजी की पूजा में सबसे पवित्र बिल्व के पत्तो को माना गया है व बिल्व के पत्तों से ही पूजा का महत्व बताया गया है। |
|
18. |
श्मशान :
जिनका धूनि रमाने का स्थान है तथा गण उनके दरबारी (साथी ) है। |
|
19. |
स्वभाव :
भोले व शमादान का इस लिए भोले बाबा है। |
|
20. |
नीलकण्ठ :
विष को कण्ठ में धारण करने से नीलकण्ठ होने के साथ नीलकण्ठ भी कहलाते है। |
|
21. |
लिंग रूप :
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी म अहंकार वश एक दूसरे से श्रेष्ठ होने के लिए होड प्रारम्भ हो गयी, इस दौरान एक अद्भुत आभा से परिपूर्ण लिंग रूप में ज्याला (ज्योति) प्रकट हुई दोनो अथक प्रयास के बाद भी उस लिंग का अन्त क पता नहीं चल सका थक हार कर जब लिंग के रहस्य का पता शिव रूप में हुआ तो दोनों ने हार कर शिव को सर्वोपरि मानकर अपनी भूल को स्वीकार किया और उसी समय से कहा जाता है शिव की पूजा लिंग रूप में प्रारम्भ हुई।
हमने देखा प्रभु शिव ने मानव मोक्ष के लिए अपने आप को पूर्णतः मानव के बीच ही स्थापित किया हुआ है। यदि मानव चाहे तो हर क्षण, हर पल भोले नाथ का संदेश ध्यान में रखते हुए आपने कामों की राह के अनुसार ही पर्णत कर सकता है। वैसे तो शिव-शक्ति के रूपों व महानता के अनेकों व्याखयान हमें पढ़ने व देखने को मिल जाते है।
जगत के पालन हार भोले नाथ के मनमोहक रूप व उनकी आभा का वर्णन करने के पश्चात शिव के मन की बात का एक प्रसंग का वर्णन हम यहां जरूर करना चाहेंगे, जो महाभागवत के आधार पर है। |
|
|