जैसा ऊपर बताया गया है इस प्राचीन शिव ज्योर्तिलिंग के प्रकट होने का समय व वर्ष का अनुमान लगाना कठिन है। श्री झाड खण्डनाथ शिवज्योर्तिलिंग मंदिर का सर्वप्रथम निर्माण कार्य बाबा गोविन्द्नाथजी के आर्शिवाद को प्राप्त कर सेठ बब्बूजी शिव के अनन्य भक्त होने के साथ सम्पन्न व्यापारिक परिवार के होने का गौरव रखते थे उस समय उनकी आयु मात्र १४ वर्ष के बालक की रही होगी, ऐसा बताया जाता है। बालक सेठ बब्बू अपनी आदत के अनुसार कुछ साथियों को अपने साथ लेकर एक बार इस ओर भ्रमण को निकले उस समय यह स्थान घना जंगल हुआ करता था। घने जंगल के कारण आना जाना नहीं होता था। जंगल में भय के कारण आना जाना नहीं होता था। सेठ बब्बूजी यहां के वातावरण में एक आकर्षण के वशीभूत एक कुई को देख कर रूक गये।
उन्होने इस घने जंगल में एक साधु को धूनि के समझ ध्यान मग्न देख कर आश्चर्य तो हुआ। किन्तु स्वतः ही निगाह दूसरी तरफ जाते ही महादेव के दर्शन करते ही आनंद का अनुभव महसूसकरते हुए शिव दर्शनों के आकर्षण व लगाव वश साधु से पूछ बैठे कि बाबा यदि आप आज्ञा दे तो में शिवलिंग पर मंरि का निर्माण करवा दूँ चूंकि बालक द्वारा अचानक घने जंगल में आना ओर असामान्य सी बात कहना साधु को लगा बालक उनसे ठिठोली कर रहा है। साधु ने भी सहजता से बोल दिया करवा दे।बालक ने पूछा काम कब से शुरू करवाना है इस बात का जवाब देते हुए साधु बोले तू चाहे तो कल से ही काम शुरू करवा दे। दूसरे दिन ३०० कारीगरो/काम करने वालों के साथ जब यह बालक सेठ बब्बूजी शिव के इस दरबार में उपस्थित हुए तो साधु के आश्चर्य की सीमा नहीं रही साधु ने कहा, हो न हो यह महादेव शिव की आज्ञा से ही इस भयावान जंगल में, जहां खुंखार जानवारों के अलावा कोई आने कि हिम्मत नहीं करता देसे में एक बालक का अचानक आना व आकर मंदिर के निर्माण के लिये पूछना, यह भोलेनाथ कि आज्ञा का संकेत नहीं तो ओर क्या है ? साधु ने इसे शिव का आदेश मान कर बालक को आर्शिवाद देकर मंदिर का निर्माण कार्य प्रारम्भ करवाया, जो ३०० कारिगरों के द्वारा कुछ ही समय में सम्पन्न हो गया। उस समय यह स्थान छोटी नदी के किनारे जो वर्तमान में नाले का रूप अखतयार कर चुका है के बीचों-बीच स्थित है। इस प्रकार झाड़खण्डनाथ की आज्ञा से बाबा गोविन्दनाथ के आशिर्वाद को लेकर श्री बब्बूजी सेठ माध्यम बने पंचनाथों में एक नाथ श्री झाड खण्डनाथ तीर्थ स्थली के निर्माण में शुरूआत के लिए । |